tag:blogger.com,1999:blog-9011122508269840782024-03-13T10:43:16.534-07:00my worldदोस्तों नमस्कारhamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-63726542904766796842010-01-22T05:51:00.000-08:002010-01-24T03:57:56.445-08:00राहुल की राह<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/S1w1XBVv_FI/AAAAAAAAAEw/ZU0pW8XNNok/s1600-h/rahul_gandhi_1.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 230px; height: 251px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/S1w1XBVv_FI/AAAAAAAAAEw/ZU0pW8XNNok/s320/rahul_gandhi_1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5430273920314899538" /></a><br />पिछले दिनों मध्यप्रदेश के दौरे पर आए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने छात्रों से मुलाकात के दौरान वो बातें कह दी जिससे राजनीति के जानकारों के साथ ही उनकी खुद की पार्टी के नेता भी हक्केबक्के रह गए। दरअसल राहुल बाबा ने जबलपुर विश्वविद्यालय में छात्रों से बातचीत के दौरान जो साफगोई और साहस दिखाया वैसी हिम्मत दिखाना आज की सियासत में बहुत कठीन काम है , अब आप सोच रहे होंगे की राहुल ने ऐसा क्या कह दिया..आम लोगों के लिए राजनीति ज्वाइन करना कितना आसान है जैसे सवाल पर इस युवा राजनेता का कहना था कि, इसमें कोई शक नहीं की आज आम इंसान के लिए राजनीति में कदम रखना बहद कठीन है उन्होंने राजनीति में सहजता से प्रवेश पाने के लिए कुछ खासियतों का होना जरूरी बताया इसमें धन बल ,पारिवारिक पृष्ठभूमि को प्रमुखता से उठाया साथ ही इसमें जोड़ दिया की वो खुद आज सियासत में इस लिए हैं क्योंकि उनका परिवार बरसों से यही कर रहा है, साथ ही उन्होंने कांग्रेस समेत सभी प्रमुख पार्टियों के आंतरिक लोकतंत्र पर सवालिया निशान लगाया, वैसे देश में बढ़चढ़ कर बोलने वाले और तरह तरह के वादे करने वाले नेताओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन राहुल बाबा ने जिस बेबाकी से देश सियासत में चल रहे गड्डमड्ड की बखिया उधेड़ी है वो काबिले तारिफ हैhamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-62942538666285780532010-01-12T07:02:00.000-08:002010-01-18T06:32:51.948-08:00हॉकी को हौसला<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/S03gihoXhzI/AAAAAAAAAEg/_nfpp8yPaMc/s1600-h/hocky.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 218px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/S03gihoXhzI/AAAAAAAAAEg/_nfpp8yPaMc/s320/hocky.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5426240009799173938" /></a><br />हमारा राष्ट्रीय खेल लंबे अर्से से बदहाली के दौर से गुजर रहा है। कभी हम हॉकी की दुनिया के बेताज बादशाह हुआ करते थे। लेकिन आज हम ओलम्पिक में क्वालिफाइ करने के लिए तक संघर्ष कर रहे हैं। माना जाता है इसके पीछे इस खेल को लेकर चल रही सियासत है। हद तब हो गई जब राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ियों ने वेतन नहीं मिलने के चलते हड़ताल पर चले गए। एक ओर हमारा देश अरबों रुपए खर्च कर कॉमनवेल्थ गेम कराने आयोजित करने जा रहा है , वहीं दूसरी ओर हॉकी के खिलाड़ी वेतन नहीं मिलने के चलते खुलेआम विरोध करने पर मजबूर हैं। ये हाल कुछ -कुछ वेस्टइंडीज क्रिकेट जैसा है, जहां खिलाड़ी आए दिन कॉन्ट्रेक्ट संबधी विवाद के चलते राष्ट्रीय टीम में शामिल होने से इंकार कर देते हैं, गौरतलब है की कभी वेस्टइंडीज की तूती पूरी दुनिया में क्रिकेट के चलते ही बोलती थी। खैर महज कुछ लाख रुपे के लिए एक बार फिर हमारा राष्ट्रीय खेल शर्मसार हुआ है। लेकिन इस बार एक उम्मीद की किरण भी इस विवाद के दौरान दिख रही है। और ये प्रकाश फूट रहा है देश में हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले भोपाल से , मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान किया है की उनकी सरकार भारतीय हॉकी का खर्च वहन करने को तैयार है और इसके लिए उन्होंने ने हॉकी संघ के अधिकारियों से बातचीत भी शरू कर दी है ,शिवराज का ये प्रयास सराहनीय है और हॉकी को हौसला देने वाला है, वैसे शिवराज के हॉकी के लिए आगे आने के बाद देशभर के कई नेताओं ने मदद करने की बात कही है। अगर ये मुर्तरुप ले तो एक सकारात्मक पहल कहलाएगी। लेकिन भारत में हॉकी के भविष्य पर सवालिया निशान तब तक लगे रहेगा जब तक इस खेल की बागडोर उन अफसरों के हाथ में रहेगी जो देश के टॉप -20 खिलाड़ियों को अल्टीमेटम देते हों, जिन्हें इस खेल के विकास के नाम पर तमाम सुविधाएं मिल रही हो और जिन खिलाड़ियों के नाम पर ये अधिकारी ऐश कर रहे हैं उन्हें चंद पैसे के लिए भी तरसना पड़ रहा हो।हम हर मामले में अपने पड़ोसी चीन से तुलना की बात करते हैं, हालांकि लाल तूफान हमसे हर क्षेत्र में काफी आगे निकलता नजर आ रहा है, व्यापार और सैन्य की बात छोड़ दें तो चाइना आज वर्ल्ड स्पोर्टस का भी पॉवर हाउस बन चुका है, जहां ओलंपिक में वो शिर्ष स्थान पर काबिज है तो भारत को एकाक पदक से संतोष करना पड़ता है। एक अरब से ज्यादा की आबादी वाले इस देश में खेल की बदहाली के लिए कौन जिम्मेदार है? इस पर अभी हम नहीं जाएंगे , ऐसे में शिवराज की पहल काबिले तारीफ है। अगर इससे सीख लेकर और गंभीरता से विचार करके कुछ और खेलों के लिए अगर कुछ और राज्य सरकारें आगे आती हैं तो कई खेलों और खिलाड़ियों का भला हो सकता है। सोचने वाली बात है की जब कोई खिलाड़ी अपनी दम पर ओलम्पिक या फिर विश्वकप में कामयाबी के झंडे गाड़ देता है तो देशभर के सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं उन्हें सम्मानित करने आगे आ जाते हैं (लगभग एक दूसरे से आगे निकलने का होड़ लग जा ता है)लेकिन खिलाड़ियों इस काबिल बनाने के लिए दूर दूर तक कोई मददगार नहीं मिलता। ऐसे में वक्त आ गया है कि अगर हमें इन खेलों में अंतराष्ट्रीय स्तर पर लोहा मनवाना है तो अपने राज्य की तासिर और संभावना के आधार पर प्रदेश सरकारों को आगे आना होगाhamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-71613826599457563862010-01-04T05:55:00.000-08:002010-01-08T22:55:44.983-08:00कल्पना का तानाबाना<a href="http://4.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/S0Hvlc0HGKI/AAAAAAAAAEE/4eRuA-v5iUA/s1600-h/avtar-2.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 80px; height: 80px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/S0Hvlc0HGKI/AAAAAAAAAEE/4eRuA-v5iUA/s320/avtar-2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5422878852999747746" /></a><br />महान निर्माता निर्देशक जेम्स कैमरुन ने एक बार फिर कल्पना का जबर्दस्त तानाबाना बुना है। उनकी हालिया रिलीज हुई फिल्म अवतार ने विश्वभर के फिल्म प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। फिल्म देखकर थियेटर से निकलने वाला इंसान ऐसा महसूस करता है मानों वो किसी और लोक से निकल कर आ रहा हो। कैमरुन की ये फिल्म दूसरे ग्रह (पंडोरा)पर मानव द्वारा कब्जा करना और वहां के निवासी नेविक को उनकी जमीन से बेदखल करने की नाकामयाब कोशिश है। वैसे महंगी फिल्म बनाने के लिए जाने जाने वाले कैमरुन ने इस बार अवतार के रुप में दुनिया की अब तक की सबसे महंगी फिल्म बनाई है तकरीबन 237मिलीयन डॉलर के खर्च से बनी इस फिल्म के एक एक शॉट पर काफी खर्च किया गया है, 1994 में पहली बार कैमरुन ने इस साइंस फिक्सन की पटकथा पर काम करना शुरू किया था। भले ही फिल्म दूसरे ग्रह की कहानी हो लेकिन इसकी कहानी पृथ्वी के कई हिस्सों में पहले भी लिखी जा चुकी है , कि किस तकर धरती के गर्भ में छुपे खजाने के लिए आफ्रिका से लेकर बस्तर तक के आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने की कोशिश की गई कहीं ना कहीं ये दर्द भी इस फिल्म में उभरता है, वैसे इस फिल्म को देखने वाले दुनियाभर के दर्शकों में अमरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह शामिल हैं , जिन्हें ये फिल्म बहुत पसंद आई , संवेदनशील कहानी के साथ ही हाई क्लास एक्शन पसंद करने वालों को ये फिल्म जरूर देखना चाहिएhamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-66614641269671564472009-11-06T00:03:00.000-08:002009-11-06T00:07:20.837-08:00एक युग का अंत<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/SvPY3yn1JFI/AAAAAAAAAD8/3PGfbqOik6w/s1600-h/joshi+ji.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 236px; height: 320px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/SvPY3yn1JFI/AAAAAAAAAD8/3PGfbqOik6w/s320/joshi+ji.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5400898831140594770" /></a><br />गुरूवार,5 नवम्बर की रात वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी का आकस्मिक निधन हो गया, इसके साथ ही भारतीय पत्रकारिता के एक युग का अंत हो गया। खासकर हिंदी पत्रकारिता में प्रभाष जी के योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता, इसके साथ ही समय -समय पर उनके द्वारा राजनैतिक, सामाजिक पहलुओं पर की गई टिप्पणी हमेसा मौजु रहेंगी.इसके अलवा प्रभाष जी ने हिंदी में जिस तरह से क्षेत्रीय शब्दों का प्रयोग किया वो पाठकों के दिल को छुने वाले रहें है, क्रिकेट की तो उन्होंने अपनी एक शब्दावली ही बना दी, जो आज बेहद लोकप्रीय है, जोशी जी जैसे लोग विरले ही होते है, जो एपने अंतिम समय तक सक्रीय रहते है, वरिष्ठ पत्रकार, चिंतक के साथ जोशी जी क्रिकेट के बड़े प्रशंसक के तौर पर जाने जाते है, और इस खेल पर लिखे गए उनके लेख काफी लोकप्रीय भी हुए, गुरुवार की रात भी वो भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रहे कांटे के मुकाबले को देख रहे थे, और सचिन के शतक से बेहद खुश थे,उनके करीबी लोगों के मुताबिक इस मैच वो अपने जाने पहचाने अंदाज में लेख लिखने की तैयारी भी कर चुके थे, लेकिन नियती को कुछ और मंजूर था। <br /><br />प्रभाष जोशी ने पत्रकारिता में जिस उंचाई को छुआ है, शायद वहां पहुंचना किसी के बस में ना हो लेकिन ये सितार उस बुलंदी पर हमेशा टिमटिमाता रहेगा, और भटके हुए कलम के सिपाहियों को रास्ता दिखाता रहेगा। कुछ गंभीर लिखने से पहले प्रभाष जी का मुस्कराता हुआ चेहरा जरूर याद करिएhamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-42968559015144933092009-10-15T13:31:00.000-07:002009-10-15T14:19:14.058-07:00उम्मीद की किरण<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/SteRtMQHJiI/AAAAAAAAACY/jQRvJE69whE/s1600-h/Voters.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/SteRtMQHJiI/AAAAAAAAACY/jQRvJE69whE/s320/Voters.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5392939284368401954" /></a><br />हाल में ही सम्पन्न हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वोट डालने के मामले में मुंबई एक बार फिर फिसड्डी साबित हुई... करीब पचास फीसदी लोगों ने यहां वोट डाला। देश के प्रमुख नेताओं से लेकर बॉलीवुड के सितारों तक ने मुंबई में प्रचार किया और लोगों को घर से निकलने की अपील की, लेकिन शहर के करीब आधे मतदाताओं ने वोट डालने के अधिकार का उपयोग करने की जहमत नहीं उठाई। इसके ठीक उलट महाराष्ट्र का सीमावर्ती जिला गढ़चिरौली जो नक्सल हिंसा की आग में जल रहा है,यहां किसी पार्टी के राष्ट्रीय नेता ने लोगों से वोट की अपील नहीं की, नक्सलियों ने चुनाव का बहिष्कार कर रखा था, और ग्रामीणों को इसमें हिस्सा नहीं लेने की धमकी भी दी गई। लेकिन वहां की जनता ने लोकतंत्र पर विश्वास जताया औऱ मुंबई से कहीं ज्यादा करीब पैसठ फीसदी लोगों ने मतदान किया। हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गढ़चिरौली एक नई उम्मीद है। सभी राजनैतिक दलों को इसका सम्मान करना चाहिए और महाराष्ट्र के विकास में इस इलाके के भोलेभाले लोगों को भी हिस्सेदार बनाना चाहिएhamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-69622559418771871922009-10-11T12:22:00.000-07:002009-10-11T13:03:14.134-07:00बिजली गुल<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/StI5GDgl5kI/AAAAAAAAACI/BXcbYQLuTFg/s1600-h/bijali.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 240px; height: 320px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/StI5GDgl5kI/AAAAAAAAACI/BXcbYQLuTFg/s320/bijali.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5391434480099911234" /></a><br />भारत में बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता 1947 में 1362 मे.वा. के मुकाबले मार्च 2009 में 1,47,965 मे.वा. हो गई । जो चक्रवृध्दि दर पर 8 प्रतिशत की वृध्दि दर का सूचक है | लेकिन यह वृध्दि देश में बढती मांग को पूरी करने में असफल रही, क्योंकि अत्यधिक मांग वाली अवधि 2008-09 में 12 प्रतिशत और ऊर्जा की कमी 11 प्रतिशत बनी हुई है |जानकारों के मुताबिक देश में बिजली संकट (घरेलु और कृषि)उत्पादन से ज्यादा वितरण के चलते है, और सौरऊर्जा जैसे स्त्रोत की उपेक्षा है। आज देश के हृदय मध्यप्रदेश की 85 फीसदी आबादी को करीब पंद्रह घंटे अंधकार में जीना पड़ रहा है।hamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-39679686053433307012009-10-07T00:23:00.000-07:002009-10-07T00:24:49.974-07:00शर्म करो<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/SsxCNLedemI/AAAAAAAAAB4/wIuQliGUmZI/s1600-h/PT-Usha11.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 250px; height: 183px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/SsxCNLedemI/AAAAAAAAAB4/wIuQliGUmZI/s320/PT-Usha11.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5389755648241924706" /></a><br />पीटी ऊषा आम भारतियों के लिए एक ऐसा नाम जो रफ्तार का दूसरा नाम है। ये नाम हम एक मुहावरे के तौर पर गाहे बगाहे उपयोग करते है, मसलन किसी की तेजी को अलंकृत करना हो तो उसे पीटी ऊषा कह दिया जा जाता है। लेकिन देश की ये सर्वकालीन महान एथलीट, पांच अक्टूबर को भोपाल में भारतीय खेल संघ के अधिकारियों की बेरूखी के आगे बेबस हो गई , और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े, पीटी के ये आंसू भारतीय खेल जगत के लिए शर्मनाक घटना है.. साथ ही बड़ा सवाल है की जब पीटी ऊषा जैसे स्पोर्ट्स आईकॉन के साथ इस तरहा का घटिया बर्ताव हो सकता है तो उन खिलाड़ियों को किस दौर से गुजरना पड़ता होगा जिन्हे अभी अपनी पहचान बनानी है।hamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-29587511950657128452009-10-04T04:19:00.000-07:002009-10-04T04:49:14.851-07:00कब होगा अंत....<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/SsiLQnuQTVI/AAAAAAAAABw/Gs_DuwuD92Y/s1600-h/adiwasi_mielenie.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 320px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/SsiLQnuQTVI/AAAAAAAAABw/Gs_DuwuD92Y/s320/adiwasi_mielenie.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5388710071805955410" /></a><br />बस्तर के कई गांव आज भी बाहरी दुनिया से कटे हुए हैं... मलेरिया, डायरिया जैसी बीमारियां यहां जानलेवा साबित होती हैं... करीब सौ स्कूल नक्सलियों के डर से बंद पड़े हैं.... बीजापुर जिले के उसुर इलाके के हजारों ग्रामीण करीब चार माह से अंधकार में जीने को मजबूर है... क्योंकि सामान्य से टैक्निकल प्रॉबल्म को दूर नहीं किया जा सका है...पूरे बारह महीने यहां जिंदगी चुनौती भरी होती हैं ... फिर वो तपती गर्मी हो या फिर मुसलाधार बारिश... प्रकृति की गोद में उससे लड़ते फिर उसी में दुबककर अपना जीवन काट रहे भोलेभाले आदिवासी आज नक्सलवादियों और सरकार के बीच की कठपुतली बनकर रह गए हैं... शासन जहां इन्हें सलवा जुडूम के सिपाही बना कर घर बार छोड़ने को मजबूर किए हुए हैं वहीं ... मओवादी इन्हें फिदाइन बनाकर पुलिस के खिलाफ जंग में झोंक रहे हैं...आखिर ये कब तक सहेगा आम बस्तरिया... कब ॥तकhamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-77091760787885009022009-09-22T13:49:00.000-07:002009-09-22T14:47:06.243-07:00वाह लुबना<a href="http://4.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/Srk60gJiBhI/AAAAAAAAABg/ywW0UFHMors/s1600-h/Lubna-2.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 192px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/Srk60gJiBhI/AAAAAAAAABg/ywW0UFHMors/s320/Lubna-2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5384399503155660306" /></a><br />लुबना एक सूडानी पत्रकार को उनके साथियों के साथ राजधानी खारतूम में इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया था, क्योंकि वो पैंट पहन कर एक रेस्टोरेंट गईं थीं। इसके बाद पुलिस के सामने ज्यादातर महिलाओं के ग़लती कबूलने के बाद उन्हें दस -दस कोड़े लगाकर छोड़ दिया गया, लेकिन लुबना ने हार नहीं मानी और इसके लिए वो संघर्ष कर रहीं हैं। इस मध्ययुगीन रवायत के बारे में विश्वभर से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं ... लुबना के साहस को सराहा जा रहा है ...hamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-88908127362150707012009-09-17T01:12:00.000-07:002009-09-17T13:19:11.968-07:00खास<a href="http://4.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/SrHxwGtsZ2I/AAAAAAAAABQ/kLadHFF_o_s/s1600-h/PICT0010.JPG"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/SrHxwGtsZ2I/AAAAAAAAABQ/kLadHFF_o_s/s320/PICT0010.JPG" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5382348838422734690" /></a><br />हैदराबाद के लिए 17 सितम्बर क्यों खास है, <br />यूं तो भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ था लेकिन,तत्कालिन हैदराबाद स्टेट को निजाम से आजादी 17 सितम्बर 1948 को मिली थी। आप को बता दें इसके लिए हैदराबादियों ने एक लंबा संघर्ष, और भारतीय सेना को लड़ाई भी लड़नी पड़ी थी। हैदराबाद का भारतीय संघ में विलय कराने में लौह पुरुष की बेहद अहम भूमिका थीhamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-10318852875185011632009-09-15T13:45:00.000-07:002009-09-15T13:48:19.438-07:00welcome<a href="http://2.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/Sq_9WPOEsAI/AAAAAAAAAA4/jrPFTOEy-Mk/s1600-h/ashu.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 200px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_MWStYYpeFEg/Sq_9WPOEsAI/AAAAAAAAAA4/jrPFTOEy-Mk/s320/ashu.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5381798638215540738" /></a><br />हमारी दुनिया में आप सभी का स्वागत है ...hamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-901112250826984078.post-67484365424042713352009-09-14T15:24:00.000-07:002009-09-14T15:30:17.051-07:00एक महान कृति सेएक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,<br />एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,<br />दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,<br />दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।<br /><br />नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला,<br />कौन अपिरिचत उस साकी से, जिसने दूध पिला पाला,<br />जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,<br />जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।।२७।<br /><br />बनी रहें अंगूर लताएँ जिनसे मिलती है हाला,<br />बनी रहे वह मिटटी जिससे बनता है मधु का प्याला,<br />बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,<br />बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला।।२८।<br />-मधुशालाhamari duniyahttp://www.blogger.com/profile/17704670261221341605noreply@blogger.com0