शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

राहुल की राह


पिछले दिनों मध्यप्रदेश के दौरे पर आए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने छात्रों से मुलाकात के दौरान वो बातें कह दी जिससे राजनीति के जानकारों के साथ ही उनकी खुद की पार्टी के नेता भी हक्केबक्के रह गए। दरअसल राहुल बाबा ने जबलपुर विश्वविद्यालय में छात्रों से बातचीत के दौरान जो साफगोई और साहस दिखाया वैसी हिम्मत दिखाना आज की सियासत में बहुत कठीन काम है , अब आप सोच रहे होंगे की राहुल ने ऐसा क्या कह दिया..आम लोगों के लिए राजनीति ज्वाइन करना कितना आसान है जैसे सवाल पर इस युवा राजनेता का कहना था कि, इसमें कोई शक नहीं की आज आम इंसान के लिए राजनीति में कदम रखना बहद कठीन है उन्होंने राजनीति में सहजता से प्रवेश पाने के लिए कुछ खासियतों का होना जरूरी बताया इसमें धन बल ,पारिवारिक पृष्ठभूमि को प्रमुखता से उठाया साथ ही इसमें जोड़ दिया की वो खुद आज सियासत में इस लिए हैं क्योंकि उनका परिवार बरसों से यही कर रहा है, साथ ही उन्होंने कांग्रेस समेत सभी प्रमुख पार्टियों के आंतरिक लोकतंत्र पर सवालिया निशान लगाया, वैसे देश में बढ़चढ़ कर बोलने वाले और तरह तरह के वादे करने वाले नेताओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन राहुल बाबा ने जिस बेबाकी से देश सियासत में चल रहे गड्डमड्ड की बखिया उधेड़ी है वो काबिले तारिफ है

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

हॉकी को हौसला


हमारा राष्ट्रीय खेल लंबे अर्से से बदहाली के दौर से गुजर रहा है। कभी हम हॉकी की दुनिया के बेताज बादशाह हुआ करते थे। लेकिन आज हम ओलम्पिक में क्वालिफाइ करने के लिए तक संघर्ष कर रहे हैं। माना जाता है इसके पीछे इस खेल को लेकर चल रही सियासत है। हद तब हो गई जब राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ियों ने वेतन नहीं मिलने के चलते हड़ताल पर चले गए। एक ओर हमारा देश अरबों रुपए खर्च कर कॉमनवेल्थ गेम कराने आयोजित करने जा रहा है , वहीं दूसरी ओर हॉकी के खिलाड़ी वेतन नहीं मिलने के चलते खुलेआम विरोध करने पर मजबूर हैं। ये हाल कुछ -कुछ वेस्टइंडीज क्रिकेट जैसा है, जहां खिलाड़ी आए दिन कॉन्ट्रेक्ट संबधी विवाद के चलते राष्ट्रीय टीम में शामिल होने से इंकार कर देते हैं, गौरतलब है की कभी वेस्टइंडीज की तूती पूरी दुनिया में क्रिकेट के चलते ही बोलती थी। खैर महज कुछ लाख रुपे के लिए एक बार फिर हमारा राष्ट्रीय खेल शर्मसार हुआ है। लेकिन इस बार एक उम्मीद की किरण भी इस विवाद के दौरान दिख रही है। और ये प्रकाश फूट रहा है देश में हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले भोपाल से , मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान किया है की उनकी सरकार भारतीय हॉकी का खर्च वहन करने को तैयार है और इसके लिए उन्होंने ने हॉकी संघ के अधिकारियों से बातचीत भी शरू कर दी है ,शिवराज का ये प्रयास सराहनीय है और हॉकी को हौसला देने वाला है, वैसे शिवराज के हॉकी के लिए आगे आने के बाद देशभर के कई नेताओं ने मदद करने की बात कही है। अगर ये मुर्तरुप ले तो एक सकारात्मक पहल कहलाएगी। लेकिन भारत में हॉकी के भविष्य पर सवालिया निशान तब तक लगे रहेगा जब तक इस खेल की बागडोर उन अफसरों के हाथ में रहेगी जो देश के टॉप -20 खिलाड़ियों को अल्टीमेटम देते हों, जिन्हें इस खेल के विकास के नाम पर तमाम सुविधाएं मिल रही हो और जिन खिलाड़ियों के नाम पर ये अधिकारी ऐश कर रहे हैं उन्हें चंद पैसे के लिए भी तरसना पड़ रहा हो।हम हर मामले में अपने पड़ोसी चीन से तुलना की बात करते हैं, हालांकि लाल तूफान हमसे हर क्षेत्र में काफी आगे निकलता नजर आ रहा है, व्यापार और सैन्य की बात छोड़ दें तो चाइना आज वर्ल्ड स्पोर्टस का भी पॉवर हाउस बन चुका है, जहां ओलंपिक में वो शिर्ष स्थान पर काबिज है तो भारत को एकाक पदक से संतोष करना पड़ता है। एक अरब से ज्यादा की आबादी वाले इस देश में खेल की बदहाली के लिए कौन जिम्मेदार है? इस पर अभी हम नहीं जाएंगे , ऐसे में शिवराज की पहल काबिले तारीफ है। अगर इससे सीख लेकर और गंभीरता से विचार करके कुछ और खेलों के लिए अगर कुछ और राज्य सरकारें आगे आती हैं तो कई खेलों और खिलाड़ियों का भला हो सकता है। सोचने वाली बात है की जब कोई खिलाड़ी अपनी दम पर ओलम्पिक या फिर विश्वकप में कामयाबी के झंडे गाड़ देता है तो देशभर के सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं उन्हें सम्मानित करने आगे आ जाते हैं (लगभग एक दूसरे से आगे निकलने का होड़ लग जा ता है)लेकिन खिलाड़ियों इस काबिल बनाने के लिए दूर दूर तक कोई मददगार नहीं मिलता। ऐसे में वक्त आ गया है कि अगर हमें इन खेलों में अंतराष्ट्रीय स्तर पर लोहा मनवाना है तो अपने राज्य की तासिर और संभावना के आधार पर प्रदेश सरकारों को आगे आना होगा

सोमवार, 4 जनवरी 2010

कल्पना का तानाबाना


महान निर्माता निर्देशक जेम्स कैमरुन ने एक बार फिर कल्पना का जबर्दस्त तानाबाना बुना है। उनकी हालिया रिलीज हुई फिल्म अवतार ने विश्वभर के फिल्म प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। फिल्म देखकर थियेटर से निकलने वाला इंसान ऐसा महसूस करता है मानों वो किसी और लोक से निकल कर आ रहा हो। कैमरुन की ये फिल्म दूसरे ग्रह (पंडोरा)पर मानव द्वारा कब्जा करना और वहां के निवासी नेविक को उनकी जमीन से बेदखल करने की नाकामयाब कोशिश है। वैसे महंगी फिल्म बनाने के लिए जाने जाने वाले कैमरुन ने इस बार अवतार के रुप में दुनिया की अब तक की सबसे महंगी फिल्म बनाई है तकरीबन 237मिलीयन डॉलर के खर्च से बनी इस फिल्म के एक एक शॉट पर काफी खर्च किया गया है, 1994 में पहली बार कैमरुन ने इस साइंस फिक्सन की पटकथा पर काम करना शुरू किया था। भले ही फिल्म दूसरे ग्रह की कहानी हो लेकिन इसकी कहानी पृथ्वी के कई हिस्सों में पहले भी लिखी जा चुकी है , कि किस तकर धरती के गर्भ में छुपे खजाने के लिए आफ्रिका से लेकर बस्तर तक के आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने की कोशिश की गई कहीं ना कहीं ये दर्द भी इस फिल्म में उभरता है, वैसे इस फिल्म को देखने वाले दुनियाभर के दर्शकों में अमरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह शामिल हैं , जिन्हें ये फिल्म बहुत पसंद आई , संवेदनशील कहानी के साथ ही हाई क्लास एक्शन पसंद करने वालों को ये फिल्म जरूर देखना चाहिए

क्यों पढ़ें

" यहां मिलेंगे दुनिया के सभी रंग .... यह एक ऐसा कैनवास है जिसमें रंगभर सकते हैं... और खुद सराबोर हो सकते हैं "