शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

एक युग का अंत


गुरूवार,5 नवम्बर की रात वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी का आकस्मिक निधन हो गया, इसके साथ ही भारतीय पत्रकारिता के एक युग का अंत हो गया। खासकर हिंदी पत्रकारिता में प्रभाष जी के योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता, इसके साथ ही समय -समय पर उनके द्वारा राजनैतिक, सामाजिक पहलुओं पर की गई टिप्पणी हमेसा मौजु रहेंगी.इसके अलवा प्रभाष जी ने हिंदी में जिस तरह से क्षेत्रीय शब्दों का प्रयोग किया वो पाठकों के दिल को छुने वाले रहें है, क्रिकेट की तो उन्होंने अपनी एक शब्दावली ही बना दी, जो आज बेहद लोकप्रीय है, जोशी जी जैसे लोग विरले ही होते है, जो एपने अंतिम समय तक सक्रीय रहते है, वरिष्ठ पत्रकार, चिंतक के साथ जोशी जी क्रिकेट के बड़े प्रशंसक के तौर पर जाने जाते है, और इस खेल पर लिखे गए उनके लेख काफी लोकप्रीय भी हुए, गुरुवार की रात भी वो भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रहे कांटे के मुकाबले को देख रहे थे, और सचिन के शतक से बेहद खुश थे,उनके करीबी लोगों के मुताबिक इस मैच वो अपने जाने पहचाने अंदाज में लेख लिखने की तैयारी भी कर चुके थे, लेकिन नियती को कुछ और मंजूर था।

प्रभाष जोशी ने पत्रकारिता में जिस उंचाई को छुआ है, शायद वहां पहुंचना किसी के बस में ना हो लेकिन ये सितार उस बुलंदी पर हमेशा टिमटिमाता रहेगा, और भटके हुए कलम के सिपाहियों को रास्ता दिखाता रहेगा। कुछ गंभीर लिखने से पहले प्रभाष जी का मुस्कराता हुआ चेहरा जरूर याद करिए

क्यों पढ़ें

" यहां मिलेंगे दुनिया के सभी रंग .... यह एक ऐसा कैनवास है जिसमें रंगभर सकते हैं... और खुद सराबोर हो सकते हैं "